मैं अवनि…
मैं अवनि….
सदियों से ढ़ो रही हूँ भार
नहीं आई कभी शिकन माथे पर
अपने गर्भ में पालती रही हूँ मैं
मनुज की उम्मीदों के फल
समय समय पर देती रही…असीमित अधिकार
बड़े-बड़े शूरमा आये और चले गये
मेरा सीना रौंदकर…..नहीं बहाये मैंने कभी आँसू
कितनी बार मांग सजी…कितनी बार उजड़ी
खुद मुझे पता नहीं
आये कुछ वक्त के सिकंदर
मेरा सरताज बनने और खुद सो गये
मेरे ही आंचल के तले….हाँ अचला हूं मैं………..
आये थे जब मनुज भेष में
राम कृष्ण सिद्धार्थ गौतम
पुत्र बनकर…. हर्षाया था मेरा तन मन
सौ-सौ बार जी उठी थी
उनका पैर हृदय पर रखकर
आभारी हूँ आदि पुरूष की
हाँ आदि शक्ति हूँ मैं…… जीवन दर्शन हूँ………
अभी भी अंकित है…..पुण्यात्माओं के पद चिन्ह
मेरे सीने पर……. हाँ अंकिता हूं मैं
मैं पोषक हूँ तुम्हारी…. मेरे बच्चों
दबे है मेरे सीने में…तुम्हारें पाप-पुण्य
जिसने मुझे जो दिया….लौटाया दुगुना कर
हाँ धात्री हूँ दात्री हूँ मैं……
मैं ही परमेश्वर का दिया….. जीवन वरदान हूँ
क्यों कि माँ हूँ मैं…..
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)