मैं अलग हूँ
मैं साधारण नही हूँ।
मैं अलग हूँ।
हाँ ,मुझे लोगो मे घुल-मिल जाना नहीं आता ।
चुप रहती हूँ अकसर क्योंकि,
मुझे फालतू चिलाना नही आता।
मेरे ज्यादा फैंस नही है क्योंकि,
मुझे औरों की तरह सजना-सवरना नहीं आता ।
मुझसे कोई प्यार नहीं करता क्योंकि ,
मुझे प्यार जताना नहीं आता ।
मेरे कोई दोस्त नहीं है क्योंकि ,
मुझे रिश्तो से परे दोस्ती निभाना नहीं आता ।
मुझे शौक नहीं पार्लर जाने का क्योंकि ,
मुझे छोटे कपड़े पहन कर इठलाना नहीं आता ।
मुझे ज्यादा लोग नहीं पहचानते क्योंकि ,
मुझे घर परिवार छोड़ कर
लोगों से रिश्ते निभाना नहीं आता।
मुझे ज्यादा लोग नहीं पसंद करते क्योंकि,
मुझे बातें बनाना नहीं आता ।
हाँ, मैं नितांत अकेली हूँ क्योंकि,
मुझे अपने गम बताना नहीं आता।
नही आता मुझे लोगो पर हँसना,
उन की कमियां निकालना।
मुझे शौक ही नही अच्छा बनने का
क्योंकि,मुझ में वो चालाकियां,
वो मकराइया नही है, जो लोगो को लुभा सकें।
नहीं है ,मेरी कोई सखी सहेली क्योंकि,
मुझे सखियों से गप्पे लड़ाना नहीं आता ।
नही हूँ मैं औरों जैसी क्योंकि,
मुझे पीठ-पीछे चुगली लगाना नहीं आता ।
नही है,मुझमें साधारण वाली वो बातें क्योंकि,
मुझे लोगों का दिल दुखाना नही आता।
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा, उप