मैं अपराधी हूँ!
शीर्षक – मैं अपराधी हूँ !
विधा- कविता
परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
मो. 9001321438
१
आज और आज के बाद ,
न कल था न कल होगा,
अजीब हैं वक्त के कायदे,
कल की फरियाद आज,
आज की फरियाद कल,
आँसू में बिखरी दुनिया,
दुनिया में बिखरा मैं,
हर माँग सिन्दूर चाहती,
पर सिन्दूर किसे चाहें
सवाल से लिपटा कफन,
हाथ हिलाती हर लाश,
मुझें नहीं पुकारती…!
मैं अपराधी हूँ!
२
न अब कविता होगी,
न गीत लिखेगी कलम।
हर निशाँ बाकी है कागज पर,
कलम की धार कुंठित है,
नागों के फण विषहीन हुयें,
कलम अमृत न घोल सकी,
जीवन की हलचल,तेज आँधियाँ
कुरेद जाती हर निशाँ
कलम की धार कुंठित हैं
गीत मौत का गाना है
कंठ अवरूद्ध हो-हो जाते।
मैं अपराधी जो हूँ!