मैं अपनी कहानी कह लेता
मैं अपनी कहानी कह लेता
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खगोलीय घटनाओं में श्याम विवर की कथा
उजाले में होता हुआ अँधेरे में गुम है।
यह है
स्थापित सत्ता की सत्ताहीनता की व्यथा।
विवर के सिद्धान्त टूट टूट कर फिर से खुद को
ग्रहण करते हैं।
महत्वाकांक्षाएँ हैं उत्तरोत्तर वर्धित होते होने का
राजनैतिक साख के विस्तार से बड़ा साम्य है
स्वाहा होते जो भ्रमण करते हैं।
कहते हैं, सत्य अभी स्थापित होना है,
विवर में हमें,तुम्हें,उसे समाहित होना है
स्वेच्छा नहीं है।नियति है।
शासितों की नियति सत्ता में गुम जैसे
होना है।
प्रारब्ध परिवर्तित नहीं होते।
होने के लिए एक आन्दोलन,क्राँति,युद्ध या
मानवता से भरी चेतना चाहिये।
श्याम विवर गणित से परिचालित होता है।
मन का गणित नहीं है इतना उन्नत।
इसे प्रयोग से संचालित होना होता है।
व्यक्तिगत प्रारब्ध को सामूहिक
सत्ता के हाथों होना होता है।
यह सब घटित होता रहे।
मैं अपनी कहानी कह लेता।
मुझे जीने में हिस्सेदारी चाहिये।
मुझे सीने में धौंकनी नहीं आक्सीजन चाहिये।
मेरे पसीने में मुझे रक्त नहीं पानी चाहिये।
मुझे मेरे प्रतिभा और श्रम का दाम चाहिये।
मैं कभी पराजित नहीं होता,हराया जाता हूँ।
मैं मन,वचन,कर्म से अछूत नहीं, बताया जाता हूँ।
श्याम विवर ग्रह,तारे,गैलेक्सियों को निर्भेद
निगलता है।
धार्मिक,राजनैतिक सत्ताधारियों की तरह
विभेद नहीं करता।
मैं अपनी कहानी कह लेता
श्याम विवर में प्रवेश के पूर्व।
प्रेम शब्द जब प्रेम करने लगता है हमें तो
शब्दकोश में इसका अर्थ बदल देते हैं लोग।
प्रतिभा मान्यताओं पर भारी पड़े तो
धर्म,जाति को योग्यता बना लेते हैं लोग।
विवर की कहानी को बचे हैं बहुत वर्ष।
हमें जीना है अभी सारा हर्ष और उत्कर्ष।
मैं अपनी कहानी कह लेता।
तुम्हारा सारा राजनैतिक,सामाजिक त्रास दह देता।
———————————————-25-10-24