मैं अति खूंखार हूं, मैं शानदार हूं…
भारत मां की शान हूँ मैं,
तूफान हूँ मैं,चट्टान हूँ मैं ।।
भेद-भाव व ऊँच-नीच में,
खोयी हुयी पहचान हूँ मैं।।
मुझसे जो टकराता है…
वो चूर चूर हो जाता है,
मुझसे जो भी बोले मीठा,
वो रस मिश्री बन जाता है।
मैं लहरों से दूर किनारा हूँ
मैं दरिया की बहती धारा हूं ..
जिस पात्र में मैं पड़ जाती हूं,
उस आकार में मैं ढल जाती हूं ।
मैं भँवर की ऐसी कश्ती हूं,
जो अपनों को पार लगाती है,
जो मेरे मार्ग बिछाए कांटे ,
उसके रास्ते से मैं हट जाती हूं।।
मैं अंबिका हूं,अंबालिका हूं,
समय आने पर रण चंडिका हूं।
मैं यूँ तो दुष्ट जनों पर भारी हूँ,
प्रेमपाश से बँधी हुई मैं नारी हूँ।
मैं योद्धा की कटार हूं,मैं तलवार हूं,
सिंहनी की दहाड़ हूं, मैं अति खूंखार हूं,
जेठ – दोपहरी में पानी की बौछार हूं,
मैं ही घरों में तीज और त्योहार हूं।
मैं भक्ति हूं,मैं शक्ति हूं,
मैं सृष्टि हूं, मैं दृष्टि हूं,
जो समझे मुझको केवल वस्तु,
उसकी तो मैं परम शत्रु हूं।
मैं सबला हूं,मैं जलजला हूं,
मैं मंगला हूं, मैं अतिबला हूं,
गलती से भी,जो समझे अबला,
उसका बजा देती हूं तबला।
मैं मलहम बाम हूं,मैं राधा नाम हूं,
मैं प्रभु धाम हूं, मैं ही सीता राम हूं,
मैं माझी की पतवार हूं, मैं श्रृंगार हूं,
मगर कोई मुझे छेड़े, तो पलटवार हूं,
मैं अति खूंखार हूं, मैं शानदार हूं।