मैं अटल हूँ
मैं अटल हूँ, हर युग में अविरल हूँ
मानवीय गुणों से युक्त अत्यंत सरल हूँ
नियति के इस काल चक्र में
मृत्युलोक से मोक्ष के कुचक्र में
जीवन पथ के इस जटिल वक्र में
जीवन-मरण के अस्थिर दुष्चक्र में
तन से प्राण मुक्त मैं अब आत्मा केवल हूँ
मोक्ष से उनमुक्त दिव्य द्वार में
काया से बाहर उपस्थित सर्व आकार में
अपनों के सहृदय स्नेह और प्यार में
भौतिक नहीं वैचारिक युग की पुकार में
असंख्य भावनाओं का सुगंधित पुष्प कमल हूँ
मधुर गीत निर्मित किया घनघोर विलाप में
अमिट छाप परित्यक्त हैं मृत्यु के पद्चाप में
विध्वंस न हो सका काल के गाल के श्राप में
दल से उठकर निर्विवाद था जो तेज प्रताप में
वसुंधरा के अध्याय का एक सुनहरा बिता कल हूँ
विचरण कर रहा है जो नित नवीन योनी में
आज भी उपस्थित है साहित्य की अमर लेखनी में
एक युग का सम्पूर्ण समाहित था ऐसे ज्ञानी में
जिसने मंत्रमुग्ध कर दिया श्रोताओं को अपनी वानी में
तिमिर को क्षीण करता मैं प्रबल उज्ज्वल हूँ
पूर्णतः मौलिक स्वरचित कृति
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छग.