मैं अकेली हूँ…
मेरी कोई नहीं सहेली, मैं अकेली हूँ,
मेरी शब्द मेरे मुँह में घुलते, मैं ऐसी जलेबी हूँ,
ना कोई मुझसे पूछता, ना कोई मुझसे बोलता,
भीड़ में उलझती मैं अकेली ऐसी पहेली हूँ,
मेरी कोई नहीं सहेली,
मैं अकेली हूँ…..
मैं फूल हूँ, खुसबू बंद है मुझमें,
मैं चाँद हूँ, चाँदनी बंद है मुझमें,
मैं बादल हूँ, बरसात बंद है मुझमें,
मैं धड़कता दिल हूँ, धड़कन बंद है मुझमें,
मैं खुद में ही बंद खुद की ही तिजोरी हूँ,
मेरी कोई नहीं सहेली,
मैं अकेली हूँ….
मेरी खुशी, मुझमें ही हँसती है,
मेरा दुख, मुझमें ही रोता है,
मेरे दिन सुनसान, सपने फरेबी है,
हाईवे के साथ चलती, मैं पगडंडी अकेली हूँ,
मेरी कोई नहीं सहेली,
मैं अकेली हूँ….
अब तमन्नाएं जैसे खत्म हो रही मेरी,
श्रृंगार भी चमक खो रही हैं अपनी,
कफ़न में लिपटी, सफेद साड़ी में सिमटती,
मैं अकेली हूँ,
उम्र बहुत ज्यादा, पर हर दिन मौत के करीबी हूँ,
मेरी कोई नहीं सहेली,
मैं अकेली हूँ….
PrAstya….(प्रशांत सोलंकी)