मैं अकेला
मैं अकेला, हूं अकेला
चलते चलते जा रहा
अपनी मंजिल पाने को मैं
तप करने जा रहा
जा रहा हूं, जा रहा हूं
मैं अकेला जा रहा
अपनी श्रम से मैं अपनी
पहचान बनाने जा रहा
मैं अकेला, हूं अकेला
चलते चलते जा रहा…
अपनी कलम से मैं अपनी
इतिहास लिखने जा रहा
जा रहा हूं, जा रहा हूं
छंद लिखने जा रहा
कृत्य पे विश्वास हमें है
जा रहा हूं जा…
गंतव्य हमें एक न एक दिन
गरज ही मिलेगी
जा रहा हूं, जा रहा हूं
चलते चलते जा रहा…
विघ्नों को मैं चीरता बस
जा रहा हूं जा…
मुझे खुद पर है भरोसा
फलत: ही तो जा रहा
खुशी, दुखी तो है दो साथी
आता जाता रहता
जा रहा हूं, जा रहा हूं
इतिहास गढ़ने जा रहा
मैं अकेला, हूं अकेला
चलते चलते जा रहा…
धीरे धीरे मैं बड़ा हो
बढ़ता ही तो जा रहा
फिर भी ऐसा प्रतीत होता
चाल मंद हो रही
खुद ओजस्वी को है खाती
हमें दनुज कहती हो
कहने को तो यह जमाना
कुछ भी कहता रहता
मैं अकेला, हूं अकेला
चलते चलते जा रहा…
लेखक:- अमरेश कुमार वर्मा