“मैं अकेला हूँ पर एक हूँ”
जो खुशी,
तुम्हारी नज़र में,
है श्वेत श्याम,
अनन्त की गोद में,
तुम्हें देखना निरा,
आलोक प्रमोद संग,
खड़ा हूँ मैं अकेला,
सरसराती पवन,
टौंटी से गिरते,
जल की टिप-टिप,
कहीं तुम्हारे गले में,
पड़े मोती की ध्वनि,
तो नहीं, जो शब्द का,
प्रतीक बन कर,
रच देता है सृष्टि,
वही सृष्टि जो,
जल से निर्मित है,
सींची गई मानव,
की स्वेद नालियों से,
कितना सुखद एहसास
मिलता है तुम्हारी नज़र में,
हृदय का मध्यम स्पन्दन,
न कोई शोर,
उसी खुशी का एहसास,
जो तुम्हारी नज़र,
में हैं,
मैं अकेला हूँ,
पर एक हूँ।
©अभिषेक पाराशर