मैं अंजान
मै अंजान
मैं जब थी गर्भ के अंदर,
लटकी उल्टे सिर के भार।
हाथ जोड़ विनती मैं करती,
अब तो मुक्ति दो भगवान।
जब मैं आई गोद में,
निकली कोख से बाहर।
तब मैंने इतना ही जाना,
बस इतना सा है संसार।
आई जब पालने से बाहर,
खेली तब मैं आंगन द्वार।
तब भी मैंने इतना जाना,
बस इतना सा ही है संसार।
अब आई स्कूल कॉलेज में,
बस कारों पर हुई सवार।
भिन्न-भिन्न विषय पढ़कर जाना,
अरे! इतना बड़ा है संसार।
छूटी अंगुली, छूटा आंचल,
मंद जवानी की चली बयार।
हर्षित पुलकित हृदय सोचे,
कितना सुंदर है संसार।
गई जवानी आया बुढ़ापा,
अब लाठी का सहे न भार।
नास्तिक हृदय बार -बार बोले,
अरे ! कितना छोटा है संसार।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश