मैंने
न सही कुछ तो मगर किया मैंने।
आपका दिल ख़ास रख लिया मैंने।
लज़्ज़त-ए-ग़म चखाया है तूने जबसे
अहल-ए-दिल तुम्हें ख़ास रख लिया मैंने।
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
तेरी यादों का इक चिराग़ रख लिया मैंने।
तू कैसा है कहाँ है ऐ मेरे भोले बचपन
लम्हा लम्हा अह’सास रख लिया मैंने।
उनको देखा तो दरीचे से रौशनी बोली
हाथ में नूर-ए-माहताब रख लिया मैंने।
नीलम शर्मा ✍️
दरीचे-खिड़की