मैंने देखा है ….
मैंने देखा है ….
मैंने देखा है
दिल के शहर को
जलते हुए
मैंने देखा है
धुंए को
आसमान में
उड़ते हुए
मैंने देखा है
रूहानी गुफ़ा में
अहसासों को
ऐड़ियाँ
रगड़ते हुए
मैंने देखा है
वो सब कुछ होते हुए
जो अंधेरों को
अपनी चीखों से आबाद करता रहा
अँधेरा अपनी ही परछाईयों से
उजालो तक डरता रहा
और मैं
अपने ही ज़िस्म की क़बा में
हर नफ़स
मरता रहा
सुशील सरना/