मैंने जो कलम उठाई है
राजनीति के इस भीषण रण में
एक कविता भावना के कण-कण में
सोच बदलती है जो हर क्षण-क्षण में
स्वार्थयुक्त कार्य है मन के स्मरण में
आइए कविता की ओर अग्रसर हों
जब-जब कलम उठाई है
मेरे अंदर से आवाज ये आई है
सत्ता के गलियारों में दिनभर
भीषण चल रही घमासान लड़ाई है
विषय गलत है चुनाव के
जिसने भी नयी पार्टी बनाई है
लालच कुर्सी का है और
कहें इसमें ही जनता की भलाई है
सत्ता में आते ही तेवर बदले
अपनों को भी आंख दिखाई है
देश के लोगों का क्या करना?
हमको तो मिलती बस मलाई है
नेता के भीतर मन में
कितनी सारी गंदगी समाई है
देश देख रहा है रोज यहाँ
अभियान में केवल चलती सफाई है
स्वार्थ का गठबंधन बनता है
जिनकी आंखों के सिर्फ लालच छाई है
भूत से पूत की इच्छा करना
आ बैल मुझे मार की योजना लाई है
नेता कुत्ता होता है बिल्कुल गलत
उसने जो ईमानदारी की नस्ल पाई है
नेता सांप होता है एकदम सही
डसता उसको जिसने ये कला सिखाई है
अगर आस्तीनों में सांप न पाले होते
अल्लाह खैर करे सबकी दुहाई है
भारत माँ की कोख ने भला
ये कैसी निकम्मी संतानें उपजाई है
और धिक्कार उनके जीवन को
जिसने अपनी ही माँ की खिल्ली उड़ाई है।
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.