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17 May 2021 · 1 min read

मैंने खुद को बदलते भी देखा है

मैंने खुद को बदलते भी देखा है
गिरते और सम्भलते भी देखा है
फिसलते और फिर चलते भी देखा है
बिखरते और सिमटते भी देखा है
खुद को समझने की लिप्सा(चाहत) से
मैंने खुद को निगलते भी देखा है…..

कच्चा हूँ अभी भी मैं,पर पकते भी देखा है
भला हूँ या बुरा,इस द्वंद में उलझते भी देखा है
सुलझाऊं इस उलझन को जल्द ही मैं
मैंने खुद को ये कहते भी देखा है
चलता रहेगा यूँ ही, ये खुद को खंगालने का दौर
‘होगा’ ‘मिलेगा’ वही सब कुछ ‘मंजुल’
जो किस्मत और कर्मों का लेखा है
मैंने खुद को बदलते भी देखा है।।।

©®।।मंजुल ।।©®

Language: Hindi
1 Like · 550 Views

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