मैंने क्यों नहीं अपनाया तुझे?
क्यों पूछते हो क्या कमी है तुममें
हर बात तो लाजमी है तुममें
फिर भी नहीं चाहा तुमको यही सवाल है ना तेरा
तो अब सुनो ,क्या जवाब है मेरा
तुम पूरी दुनिया को आसमां ,हर शख्स को तारा और मुझे अपना मेहताब कहते थे
अपने सारे सपने भूल कर मुझे बस अपना पहला और आखिरी ख्वाब कहते थे
मैं छूना चाहती थी हर ऊंचाई तेरे नाम से
और तुम थे कि मेरी नाम को ही अपनी सर्वश्रेष्ठ ऊंचाई मानते थे
मैं कैसे उसे अपना सब कुछ बना लेती जो बस मुझे पाकर अपना सब कुछ पा लेता था
तुम खुद एक आसमान हो
तुम खुद एक बुलंदी हो
मैं चाहती हूं तुम इतना ऊंचा उठो
की इस आसमां के नीचे हर इंसान की तुम बंदगी हो
बस इसीलिए नहीं पकड़ा था हाथ तेरा
कि मुझे अपनी सर्वश्रेष्ठ ऊंचाई मानने वाला
एक सर्वश्रेष्ठ ऊंचाई पर हो!!