मेहनत से रोटी मिले दो वक्त की
मेहनत से रोटी मिले दो वक्त की
छल- कपट से दूर हो हर बात मेरी,
कर्मों से अब न बदलेगी ज़ात मेरी।
न चाहिए फरेब की इक बूँद भी,
बेशक रूखी- सूखी गुज़रे रात मेरी।।
बस रहमत की दृष्टि रखना प्रभु,
कर गुज़रने का जज़्बा बेपनाह है।
मेहनत से रोटी मिले दो वक्त की,
जिन्दगी में यही बस एक चाह है।।
न डरता हूँ सत्य की गवाही से,
न डरता हूँ संघर्ष की लड़ाई से।
बचाना खुदा मेरे हर वक्त मुझे,
इस कलयुग में पाप की कमाई से।।
जितना बोया उतना ही काट पाऊँ,
बेवसों से हक छीनना गुनाह है।
मेहनत से रोटी मिले दो वक्त की,
जिन्दगी में यही बस एक चाह है।।
भटक जाऊँ तो ध्यान में लाना,
मेहनत का ही फल दिलाना।
आलस का गर साया भी पड़े,
तब भूखे पेट ही मुझे सुलाना।।
न छीने हक की कोई किसी से,
खुदा बस यही तुझसे गिला है।
मेहनत से रोटी मिले दो वक्त की,
जिन्दगी में यही बस एक चाह है।।
नजर आए इन्सान में इन्सान मुझे,
देकर ज्ञान यह कर देना धनवान मुझे।
मेहनत की रोटी ही खा पाऊँ सदा,
हे खुदा मेरे! देना यह वरदान मुझे।।
‘भारती’ बनने को तैयार प्यासा कौआ,
सुना है जहाँ चाह वहीं तो राह है।
मेहनत से रोटी मिले दो वक्त की,
जिन्दगी में यही बस एक चाह है।।
सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू (हि.प्र.)