मेला: सात दोहे
मेला: सात दोहे
// दिनेश एल० “जैहिंद”
मेला देता है मजा, _ मेला बड़ा सुहाय ।
हर्षित नर-नारी सबै, बच्चे बड़ा लुभाय ।।
हैं तमाशे अलग-अलग, खेलों का भरमार ।
कुछ खेलो देके नगद, खेलो तनिक उधार ।।
कुछ खा लो, पी लो जरा, मजे करो भरपूर ।
झूला झूलो झूमके, __ हो जाओ तुम चूर ।।
रेलमरेला चाट का, _छोले का चटकार ।
लेने को गर्म गुजिया, बैठी कितनी नार ।।
ठेलमठेला भीड़ है, _ लगा हुआ बाजार ।
लगाकर दाव दाव पर, ठगे जाते हजार ।।
मेला है धरती यहाँ, तरह-तरह के भोग ।
माल उड़ाने में सभी, _लगे हुए हैं लोग ।।
मेला मोल-मोल मिला, मजे करो जैहिंद ।
मजे-मजे जीवन कटे, _दया करो गोविंद ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद
24. 11. 2017