*!* मेरे Idle मुन्शी प्रेमचंद *!*
कष्ट स्वयं महसूस किया, वे कष्ट की भाषा लिखते थे
पढ़े – लिखे मेधावी होकर, साधारण से दिखते थे
कष्ट स्वयं महसूस………..
1) पुरुष नहीं वे आइना थे, सामाजिकता लाते थे
दु:ख से ओतप्रोत समाज में, लेख से जाने जाते थे
गाँव – शहर के दुखड़ों से वे, स्वयं भी बहुत बिलखते थे
कष्ट स्वयं महसूस……….
2) लेख थे उनके क्रांतिकारी, अंग्रेजी डर जाते थे
भय था उनको सिंह के जैसा, पर कुछ ना कर पाते थे
लेख लिखे सबको पढ़वाये, वे क्रांति अलख ही चाहते थे
कष्ट स्वयं महसूस……….
3) भरा था जीवन कष्टों से, पर सामाजिकता न छोड़ी
बचपन में माता गुजरी, फिर पिता ने भी सांसें तोड़ी
फिर भी अविचल होकर, लेखन में झण्डे लहरते थे
कष्ट स्वयं महसूस……….
4) मैं भी उनके लेख पढ़ा, मैं खूब हंसा जी भर रोया
दिल को बड़ा सुकून मिला, मैं कई दिनों तक था सोया
उनके लेख सब जन-जन को हीरे- मोती से रहते थे
कष्ट स्वयं महसूस………
लेखक:- खैमसिंह सैनी
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