मेरे हाथ के खून से
मेरे हाथों के खून से
मेरे हाथों के खून से,कभी मेहँदी तू लगाना
याद जब मेरे आये तों, थोडा तू मुस्कुराना
मैंने ये ग़ज़ल कलम से नहीं,अपने खून से लिखा हूँ,
क्यों मुझे कवि बना दी,तेरी बातें ही सुनकर लिखा हूँ,
जाना ही था तो यादें भी ले जाती,क्यों छोड़ दी मेरा सहारा,
कभी ना सोची मुझ पर तू,कैसे जीयेगा बेचारा,
छोड़ दी बीच समुन्दर में लेकर ,क्यों तू बताना,
मेरे हाथों के खून से,कभी मेहँदी तू लगाना,
आज नहीं तो कल, कभी तो शादी होगी,
मेरे हाथों के खून, तेरी मेहँदी रंग लगेंगीं,
याद करना कभी एक पल,जो मेरे साथ गुजारी थी,
सीने में तेरी दिल है,वो कभी हमारी थी,
क्या मिला तुम्हे बर्बाद करके,सनम तू बताना,
मेरे हाथों के खून से,कभी मेहँदी तू लगाना,
राकेश चतुर्वेदी”राही”(छत्तीसगढ़)