मेरे हाथों में शायद वो रेखा नहीं
गज़ल
काफिया- आ
रदीफ- नहीं
212…..212…..212…..212
वो हमारे न होंगे ये सोचा नहीं!
मेरे हाथों में शायद वो रेखा नहीं!
मैंने दिल में सजाकर रखा था उन्हें,
वो न हों ख्वाब आंखों ने देखा नहीं!
चांद पाने की थी इक तमन्ना मेरी,
कोई तारा मिले और सोचा नहीं!
कार के नीचे आकर जो बच्चा मरा,
उसने मांगी थी रोटी तो रोका नहीं!
वो जो कल मर गया था वो मारा गया,
ये है सच आंख का कोई धोखा नहीं!
ध्यान सरकार ने ही नहीं जब दिया,
हम किसानों की अब कोई सुनता नहीं,
अब तो रोजी और रोटी के लाले पड़े,
ख्वाब कल का कोई और बुनता नहीं!
मैनें सोचा बहुत दूर तुझसे रहूँ,
जोर दिल पे मेरा अब तो चलता नहीं!
मैं हूँ प्रेमी तेरा ऐ मेरे दिल नशीं,
तेरे बिन अपना होता गुजारा नहीं!
……. ✍ सत्य कुमार प्रेमी