मेरे हर शब्द की स्याही है तू..
मेरे हर शब्द की स्याही है तू,
मेरे हर अल्फाज का लब्ज है तू,
मैं किताब हूँ तेरी मुहब्बत की,
उस किताब का हर पेज है तू..।।
कोरे कागज को मैंने लिखा है,
हर पंक्ति में मैंने तुझको लिखा है,
वक्त में घुल जाए वो शब्द नहीं,
मिट जाए वो क्षर नहीं अक्षर है तू..।।
हर दिशा से तुझको चुना है,
हर फूल की खुशबू से तुझको गुथा है,
मैं खिलता हुआ बाग हूँ जीवन का,
मेरे हर पतझड़ की बसंत बहार है तू..।।
मैंने खुदा को भूलकर तुझको देखा है,
और खुद को भूलकर खुदा को देखा है,
मैंने मंदिर,मस्जिद, गुरुद्वारे में नहीं,
तुझमें हँसता हुआ मेरा खुदा है तू..।।
रंग बसंती में रंगा मेरा भोर है तू,
और गोधूलि की हर साँझ है तू,
तेरी जुल्फों में मेरी रात होती है,
और हर रात को खिलता पूर्णिमा का चाँद है तू..।।
मेरे हर स्वेद की बूंद है तू,
मेरी हर तड़फ की आह है तू,
तू साँस है मेरे जीवन की,
मेरी किताब की शुरुआत और अंत है तू..।
मेरे हर शब्द की स्याही है तू…..