मेरे हमदम
मेरी हमदम
मेरी पत्नी हरदम मुझ पर हरदम बरसती है
सावन भादो की झड़ी भी मुझे कमतर लगती है
घर में हर तरफ चकरी सी घूमा करती है
शाम तक थकी हारी चिढ़ चिढ़ि सी लगती है
मैं सैर कराऊं तो गुल बहार लगती है
हीरे का हार पहनाऊँ तो इतराती फिरती है
जीवन की नौका जब फैरी लगाती है
वह बारी बारी से संग मेरे चप्पू चलाती है
इसकी प्यार भरी झिड़की भी भली लगती है
अपने पल्लू से मेरे माथे का पसीना पोंछने लगती है
वो मेरी हम-दम मेरी दोस्त लगती है
मेरी परेशानी में मेरे संग खड़ी होती है