मेरे साथ चलो
काटों भरा है सफ़र मेरे साथ चलो
ना जाने कब हो गम की सहर, मेरे साथ चलो
मैं अकेले भटक ना जाऊं कही
अंधेरी है डगर, मेरे साथ चलो
चारो तरफ मेरे सिर्फ दर्द के सन्नाटे है
दूर तक देख कर उदास लौटी नज़र, मेरे साथ चलो
अंधेरी है डगर ,मेरे साथ चलो
तेरे पथ में तेरे हमराह है और भी
मैं जानती हूं मगर,मेरे साथ चलो
अंधेरी है डगर , मेरे साथ चलो
है तुझको नसीब सपनो का बसेरा
मैं मुसाफ़िर हूं उम्र भर , मेरे साथ चलो
अंधेरी है डगर , मेरे साथ चलो
प्रज्ञा गोयल ©®