मेरे सनम
तुम्हीं तुम हो मेरे सनम
तुम्हीं तुम हो मेरे सनम
चले आओ मुखड़े से पर्दा हटाए
बिखर जाये अहसास में चाँदनी सी
कई ख़्वाब ले लें जनम
तुम्हीं तुम हो मेरे सनम
वो सुबह-ए-बनारस का खिलता कँवल हो
कि शाम-ए-अवध की वो ताज़ा ग़ज़ल हो
हो परियों की रानी, कि दिलकश कहानी
किताबों में सूखे गुलों की निशानी
ये मासूम चेहरा, ये क़ातिल अदाएं
ये ख़ामोश नज़रों से आती सदाएं
कहूँ क्या तुम्हारे सितम
तुम्हीं तुम हो मेरे सनम
समन्दर किनारे की हल्की लहर सी
जो तुमने मिलाई वो पहली नज़र थी
वो झरने का संगीत लब पर तुम्हारे
पहाड़ों का जादू नज़र में उतारे
वो पहली मोहब्बत का उनवान हो तुम
मेरी शायरी, मेरा दीवान हो तुम
न टूटे कहीं ये भरम
तुम्हीं तुम हो मेरे सनम
वो छुपते-छुपाते मेरे पास आना
दुपट्टे के कोने में उंगली फिराना
मोहब्बत के बैरी ज़माने की बातें
वो बातों में रो – रो के मुझको बताना
अभी तक मेरी इन निगाहों में हैं वो
सुनो! आज भी मेरी यादों में हैं वो
तेरी ज़ुल्फ़ के पैचो- ख़म
तुम्हीं तुम हो मेरे सनम
है रब ने बनाई ये भोली सी सूरत
तू लगती है जैसे अजन्ता की मूरत
तेरे सुर्ख़ होठों की शबनम सलामत
उनींदी सी आँखों का जादू क़यामत
ये रंगे-बहारां निगाहों में भर लूँ
मैं ख़ुद को ज़रा सा ख़तावार कर लूँ
कि हो जाए क़ाफ़िर क़लम
तुम्हीं तुम हो मेरे सनम
मेरी चाहतों को न इल्ज़ाम देना
‘असीम’ आँसुओं की लहर थाम लेना
दिसम्बर के सूरज की पहली किरन है
ये जंगल से आती हवा की छुवन है
बहार-ए-बहिश्तां खिज़ां कैसे होगी
तुम्हीं अब बताओ क़ज़ा कैसे होगी
पढ़ी जो नमाज़-ए-क़सम
तुम्हीं तुम हो मेरे सनम
© शैलेन्द्र ‘असीम’