मेरे संग
दिखता था हर रोज़ एक सपना
नई मंज़िले नपती थीं
खिलता था हर रोज़ गुल एक
जब मेरे संग वो चलती थी ।
रत्न बिखरते थें . बालों से
जब जब वो सँवरती थी
उसके गालों पर पड़ते गड्ढे
नई उमंगे भरती थी ।
कभी मिलन की चाह थी होती
कभी विरह का मन होता
अठखेलियों में बीती जवानी
जब मेरे संग वो हँसती थी ।
कभी निशा में छिप के मिलना
कभी देख कर भाव न देना
सब ओर रंगों की बिखरी छटाऐ
जब कभी वो मिलती थी….
हाँ । मेरे संग वो चलती थी ।।
……….अर्श