मेरे शहर में
बदल रहे मोहरे हैं ,मेरे शहर में ।
लुटे लुटे सबेरे हैं मेरे शहर में ।
बदनाम गलियों में उन्मुक्त घूमते ,
बदनाम चेहरे हैं ,मेरे शहर में ।
कभी घी दूध की नदियाँ बहती थीं यहॉं,
सब पानी को ढूँढते हैं मेरे शहर में ।
काम की तलाश में दर दर भटक रहे ,
ये युवक मरे मरे हैं, मेरे शहर में ।
आरक्षण ने इस कदर बेकार कर दिया ,
विद्वान लुटेरे हैं ,मेरे शहर में ।
त्याग की सूरत भी देती नहीं दिखाई ,
मोहताज इल्मवरे हैं मेरे शहर में ।
ईश्वर के लिए ऊँचे मंदिर बने यहॉं ,
इंसा तड़प रहे हैं मेरे शहर में ।
दर्द की सौगात पीने को हैं उत्सुक,
वो चंद सिरफिरे हैं मेरे शहर में ।
‘हितैषी ‘ ने बहुत सोचा और जज्ब कर लिया ,
पग पग पर झमेले हैं , मेरे शहर में ।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
बड़वानी (म. प्र . ) 451 551
मो. 79 74 921 930