मेरे यह नैन बरसे है_______ मुक्तक_ कविता
मुक्तक _कविता / गजल ___ पाठक जिस लय में पड़ना चाहे-
मेरे यह नैन बरसे हैं, मिलन को तुझसे तरसे है।
नहीं हां लौट के आया ,जब से तू निकला घर से है।।
घटाएं सावन की बरसी,अकेली मैं ही तो तरसी।
धरा ने ओढ़ी हरियाली,मन तो सबके हरसे है।।
भीगा है यह बदन मेरा, अश्रुधारा के झरनों से।
नदी सी बह चली साजन, घने वन के पहाड़ों से।
फिर भी हर घांट सूना है, सफर की नाव में मेरे।
प्रीत में डूबे है सारे,सबके आंगन तो जलसे से।।
अभी भी आस है मुझको,रहम तो आएगा तुझको।
संदेशा भेजा है मैंने, जाएगा मिल ही यह तुझको।।
परदेसी सुन लेना इस बार,सहुंगी न अब इंतजार।
लौटकर आ जाना वरना निकल जाएगी जां मेरी हलक से।।
राजेश व्यास अनुनय