— मेरे मार्गदर्शक मेरे पापा —
आपने अंगुली पकड़ के चलना सीखा दिया
आपने मुझ को बोलना सीखा दिया
आप न होते तो मेरा क्या वजूद था
आपने मुझ को अनमोल बना दिया
आप ही थे मेरे मार्गदशक
आप ही थे मेरे हमदम
आपने ने ही बढ़ाना सीखाया
जीवन के पथ पर मेरे कदम
आपने बताया कैसे जीना है
आपने ही बताया कैसे बढ़ना है
में तो अनजान था दुनिआ से
आपके मार्गदर्शन ने सब समझा दिया
आप बिन कैसे करता कोई कल्पना
आप ही तो थे मेरे पालनहार
आप ही से थी मेरी दुनिआ
आप ही तो थे मेरे लिए महान
आना जाना तो संसार में सब का है
आप सा न आएगा दोबारा यहाँ
कल को मैं भी चला जाऊँगा “पापा”
छोड़कर आप की तरह घर संसार
अजीत कुमार तलवार
मेरठ