मेरे मानवीय मनोभाव
मेरे मानवीय मनोभाव,वही हैं पहले थे
संवेदनाएं अहसासात भी वही हैं, जो होश संभाला जब थे
माना उम्र गुजर गई है, पर दिल तो वही का वही है
नसें सिकुड़ गईं हैं, खुशी गम उत्तेजनाओं का वेग तो वही है
मेरे जेहन में, बचपन जवानी प्रौढ़ जस का तस ताजा हैं
भले ही तुम न समझो,सब वक्त का तकाजा है
जब मुझे किसी ने अंकल कहा मैं चौंक गया
जब दादा कहा तब अंदर से सहम गया
लेकिन तुमने बूढ़ा कहकर,करा दिया है उम्र का अहसास
इसलिए तुम्हें बता रहा हूं, बात ये खास
मुझे तो लगता है,दिल तो वही है बच्चा है
दर्पण की तरह साफ और सच्चा है
इसलिए मत रखो, दुखती रग पर हाथ
भले ही तुम मत चलो, साथ साथ
मैं आज भी वही हूं, तुम्हारे साथ
सुरेश कुमार चतुर्वेदी