मेरे मन का एक खाली कोना Part- 4
मेरे मन का एक खाली कोना
Part- 4
एक दिन रिद्धि ऑफिस के लिए लेट हो रही थी वह जल्दी-जल्दी तैयार होकर दरवाजे से बाहर निकली ही थी कि किसी अजनबी से टक्करा गई, उसने अपने आप को संभालते हुए सॉरी कहते हुए आगे बड़ी ही थी के उस शक्स ने कोई बात नहीं कहते हुए, रिद्धी को रोकते हुए पूछा…. excuse me…
क्या आप मुझे यह पता बता सकती है, रिद्धी ने जल्दी बाजी में बात को अनसुना कर बिना जवाब दिए ही अपने ऑफिस की ओर चल दी।
रिद्धी जल्द बाजी में ऑफिस पहुँची तो गेट पर ही उसकी ऑफिस की फ्रेंड ने बोला आराम से रिद्धी आराम से और टेंशन मत ले अभी तक sir नहीं आए है और क्या हो जायेगा थोड़ा लेट हो भी गई तो, हर रोज तो टाइम पर ही आती है ना। रिद्धी अपनी फ्रेंड को गुड मॉर्निंग के साथ थैंक्यू बोलकर अपने डेस्क पर चली गई,
उसकी फ्रेंड ने उसे फिर से आवाज लगाई रिद्धी चल चाय पीकर आते है, जल्द बाजी में आज सुबह की चाय न पी पाने के बाद रिद्धी का मन होते हुए भी रिद्धी ने चाय पर जाने से मना कर दिया, पर रिद्धी जितनी शांत थी, उसके ऑफिस की फ्रेंड वाणी उतनी ही जिद्दी, रिद्धी के मना करने पर भी उसे जबरदस्ती अपने साथ चाय पर ले ही आई।
वाणी वह लड़की थी जिसने रिद्धी को इस इंश्योरेंस कंपनी में नौकरी दिलवाई थी। शायद इस कारण भी रिद्धि उसे ज्यादा मना नही कर पाई थी ।
चाय पीते-पीते वाणी ने रिद्धि को पूछा, रिद्धी इस सन्डे का क्या प्लान तेरा, रिद्धी ने जवाब में कहा कुछ नहीं वही घर के रोज के काम काज। तुम्हारा वाणी… रिद्धी ने भी वाणी से वही सवाल पूछ लिया।
वाणी ने कहा रिद्धी कल सन्डे है। और सुबह 10:00 बजे तैयार रहना में तुझे लेने आऊंगी कही चलना है। रिद्धी ने मना करते हुए कहा, नहीं मुझे कही नहीं जाना वाणी।
वाणी ने भी कहा जब तुझे पता है रिद्धि में तेरे मना करने से नहीं मानने वाली तो फिर मना करने का कोई सवाल ही नहीं हे तेरा।
कल में तुझे लेने आ रही हु बस।
यह कहकर रिद्धि और वाणी आफिस के अंदर चले गए।
जैसे तैसे शनिवार का दिन गुजर गया।
रिद्धी आज पैदल ही घर तक टहलती-टहलती आ गायी।
और रास्ते से गंगा प्रसाद की दुकान से गरमा गरम कचौरी भी ले आई। जब कभी भी रिद्धी को गरमा गरम कचौरी बनती दिखाई देती वह जरूर ले आती। आंटी और उसे कचौरी बहुत पसंद थी।
रिद्धी जैसे ही घर पहुँची और दरवाजे से ही आंटी को आवाज लगाई, देखो आंटी मैं क्या लेकर आई हूँ… आपके लिए।
यह कहते हुए, रिद्धी आंटी के रूम में चली गई।
जैसे कोई बच्चा अपनी मां को आवाज लगता है कोई खास बात बताने के लिए दूर से । अंदर जाकर देखा तो कोई शख्स आर्मी की ड्रेस पहने हुए आंटी के पास बैठा हुआ था।
आओ रिद्धी बेटा आज जल्दी आ गई ऑफिस से ,और क्या लेकर आई हो बताओ जरा आंटी ने कहा ।
रिद्धी ने एक नजर उस शख्स को देख बाद में आती हु कहकर, अपने कमरे की ओर जाने को हुई की वह शख्स बोला.. अरे आप… रिद्धि कुछ बोलती की आंटी बोली, क्या तुम दोनों एक दूसरे को जानते हो।
रिद्धी ने ज्यादा न सोचते हुए जवाब में नहीं में सर हिला दिया।
आंटी कुछ और बोलती की वह अजनबी शक्स बीच में बोलते हुए कहा मौसी न मैं इन्हें जानता हूँ और ना ही ये मुझे जानती है।
आज सुबह जब में ऑटो से उतरा तो, ये मुझे टकरा गई थी, मेने इनसे आपका एड्रेस भी पूछा पर, शायद यह इतनी जल्दी में थी तो शायद ध्यान नहीं दिया और बिना एड्रेस बताएं चल दी।
अच्छा तो यह बात थी, में तो यह समझी की तुम लोग एक दूसरे को पहले से ही जानते हो।
ओह अच्छा वो आप थे, रिद्धि को आज सुबह की अपनी जल्द बाजी में किसी से टकरा जाना याद आया i m really sorry में बहुत जल्दी में थी और ऑफिस के लिए लेट हो रही थी। इसीलिए मैने ध्यान नही दिया रिद्धी ने कहा ।
खेर कोई बात नहीं, आंटी ने रिद्धि की बात बीच में ही कटत हुए कहा, रिद्धी यह मेरी बहन का लड़का सिद्धेश है, यह एक amry officer है यहां 3 महीने के लिए एक mission के सिलसिले पर आया है कुछ दिनों के लिए। आज से यह यही रहेगा।
और सिद्धेश यह रिद्धि थी मेरे साथ यही रहती है और एक इंश्योरेंस कंपनी में काम करती है।
सिद्धेश ने एक बार और रिद्धी को देख हल्की-सी मुस्कान के साथ नमस्ते बोल दिया।
रिद्धी ने भी इस औपचारिकता का जवाब में, मैं पानी लेकर आती हु। यह कहकर रिद्धि किचन में चली गई।
रिद्धी को इस शख्स को देख कुछ अजीब-सा महसूस हुआ और सोचने लगी की आंटी ने तो कहा था कि उनकी फैमिली से उनके यहाँ कोई नहीं आता है।
फिर ये आज अचानक से क्या।
रिद्धी ने अपने दीमाग में आए इस सवाल को अधूरा छोड़, पानी के गिलास के साथ ठंडी हो रही कचोरियों को भी साथ में ले जाना ठीक समझा।
कचोरियों को खाते वक्त सिद्धेश ने आंटी को देखकर कहा मौसी क्या कचौरी है कितनी टेस्टी मेने आज से पहले कभी ऐसी कचौरी नहीं खाई, थैंक्यू मौसी।
आंटी ने कचौरी का टुकड़ा तोड़ते हुए, कहा धन्यवाद मुझे नहीं रिद्धी को बोल। यही लेकर आती है कचौरी मुझसे तो घर से बाहर निकला नहीं जाता ज्यादा, बाहर के सारे काम, समान यही लाती है।
सिद्धेश ने कचौरी खाते हुए रिद्धी को थैंक्यू कहा।
रिद्धी बिना मुस्काए जवाब दिए आंटी को जाने का बोलकर अपने रूम में चली गई।
अचानक ने रिद्धि का इस कदर उठ कर चले जाना सिद्धेश को समझ नहीं आया और अपनी मौसी से पूछ लिया, मौसी मैने कुछ गलत कह दिया क्या… ? नहीं सिद्धेश मौसी जानती थी रिद्धि के इस कदर उठ कर चले जाने का कारण।
सिद्धेश ने आपस पूछा बताओ ना मौसी क्या बात है।
मौसी ने रिद्धि का अतीत बताना ठीक नहीं समझा और।
सिद्धेश को आराम करने के लिए कहा। ठीक है मौसी, कहकर सिद्धेश अपने कमरे की ओर चला गया।
अचानक से आए रिद्धि की आंखों मे आसुओं को देख ,आंटी समझ गई थी ।
जब कभी भी किसी आर्मी वाले को देखती या किसी से आर्मी की बात करते हुए सुनती तो उसे अपने पति की बहुत याद आने लगती और रिद्धी की आंखे धीरे-धीरे भीगना शुरू कर देती, वह अपने अतीत को नहीं बुला पाती।
अपने अतीत को भूलना कहा आसान होता है।
और जब अतीत के किस्से याद आते है तो कितना मुश्किल हो जाता है उस हादसे से बाहर निकल जाना और खुद को संभालना।
……. अब आगे की कहानी
Part-5 में