मेरे मन का एक खाली कोना Part – 3
मेरे मन का एक खाली कोना
part – 3
हम इंसान भी ना बहुत अजीबो-गरीब होते है, पल में क्या सोचते है और दूसरे ही पल कुछ और, कभी कभी तो इतनी हिम्मत बंध जाती है की बस, अब सब से सामना कर लेंगे, और कभी तो छोटी-मोटी बात पर ही निराश हो कर जीने की उम्मीद छोड़ देते है।
रिद्धि चाय बनाने किचन तो गई , पर उसे वापस एक सोच ने घेर लिया, अपनी बाकी की ज़िंदगी के बारे में, की अब वह आगे क्या करेंगी, क्या करना चहिए उसे।
विचार उसे और आगोश में लेते इतने…. ही चाय के बाहर निकलने पर उसका ध्यान गया, और चाय के साथ-साथ आंटी की आवाज रिद्धी के कानो में। रिद्धी ने चाय छानी और लेकर आंटी के पास आकर बैठ गई , देखा तो आंटी टीवी में कोई फिल्म देख रही थी। रिद्धी के बैठने पर आंटी ने रिद्धि को कहा..
पता है, रिद्धि बेटा जब तेरे अंकल और मैंने शादी की थी, तो हम शादी के बाद सबसे पहली फिल्म टाॅकीज में यही देखने गए थे” 1942: A Love Story ” और पता है इस फिल्म को देखकर आने के बाद हमने इसके गानों को इतना गुन गुनाया की अगर हम में से कोई अगर नाराज भी हो जाता न तो हम इसका गाना , रूठ न जाना तुमसे कहूं तो, गाकर एक दूसरे को जल्दी से मना लेते थे।
हमें यह फिल्म बहुत पसंद आई थी । उसके बाद से आज तक कोई फिल्म देखने टाॅकीज नही गई, यह मेरी पहली और आखरी फिल्म थी। आंटी बिना रुके अपनी कहानी मुझे सुना रही थी । और में उन्हें एकटक देख सुन रही थी। उनकी आंखे नम हो चुकी थी, उनकी आंखों को देख ऐसा लग रहा था मानों बहुत कुछ कहना चाहती हो, वें बातें जो कभी किसी को न कह सकी।
उनकी आंखों से आसू का एक कतरा बहने ही वाला था की, उसे आंटी ने अपने पल्लू से पोछते हुए कहा ।
रिद्धी बेटा, वक्त अच्छा हो चाहे बुरा अगर साथ देने वाला हो ना तो सब अच्छे से कट ही जाता है ।
आंटी ने रिद्धि को अपने दिनों के बहुत से किस्से सुनाए, की वो दोनों कैसे मिले थे, उन्हें क्या पसंद था, वे चुपके से कैसे घूमने जाते थे, कैसे मिलते थे। आंटी ने सारे किस्से सुनाए, और में चुप चाप उनकी तरफ एक टक देख सुनती रही ।
एक बार और आंटी ने अपने आंखों के किनारे आए आँसुओं को पोंछा और अपनी बात अधूरी ही रख रिद्धि से खाने के लिए पूछा, आज भूख नही लग रही क्या रिद्धि बेटा, खाना नही बनाना क्या… ?
रिद्धि ने दीवार घड़ी की और नजर डालते हुए कहा, रात के 10 बज गए पता ही नहीं चला बाते करते करते, अभी बनाकर लाती हूं कहकर रिद्धि उठने को हुई तो, आंटी ने रोकते हुए कहा, रिद्धी मुझे भूख नही है। तूम अपने लिए ही कुछ बना ले और दीक्षा के लिए दूध गर्म कर देना ।ठीक है, आंटी आप आराम कीजिए यह कह कर रिद्धि खाना बनाने चली गई ।
रिद्धी का मन कल रात की बैचेनी के बाद अब थोड़ा ठीक था। उसे अच्छा भी लगता है आंटी से बाते करके, और उनकी बातें सुनकर हमदर्दी से रिद्धी की आंखे नम भी हो जाया करती। और उन्हें देख जीने की हिम्मत भी आ जाती ।
वह कर भी क्या सकती थी उनके लिए, अब जो बाकी जीवन है , वह हमेशा उनके साथ रहेगी। उनका साथ देंगी , रिद्धी ने अपने मन में खुद से कहा ।
इन 2 सालों में आंटी और रिद्धी के बीच रिश्ता कभी किरायदार और मकान मालिक का रहा ही नहीं, ना ही रिद्धि को यह अहसास हुआ और न आंटी को, सब कुछ तो आपस में बांट लेते थे दोनों, वो चाहे बड़े से बड़ा दुख हो या छोटी से छोटी खुशी । जब से रिद्धी यह आई थी बस 2 महीने ही उसने खाना अलग बनाया होगा जब वह नई नई थी ।
उसके बाद से आज तक आंटी ने न उसे अलग बनाने दिया और ना ही अकेले खाना खाने दिया । कुछ भी नही छुपता था दोनो के बीच, और जो बात रिद्धि मन में ही रह दबा देना चाहती थी, उसे भी आंटी भाप लेती और उसके मन से निकाल उसे हल्का कर देती। रिद्धी को ऐसा महसूस होता जैसे,
मानो किसी ने पैर में लगे काटे को निकाल मलहम लगा दिया हो । कभी रिद्धी आंटी को देख उनका अकेलापन दूर करती वही आंटी उसे गुमसुम सी देख कभी उसे अपना ममता मई स्नेह देने उसके करीब चली जाती। “अपनापन कहां खून के रिश्ते देखता है, उसे तो स्नेह की जरूरत होती है, निस्वार्थ भाव के।
रिद्धि रोज ऑफिस जाती और शाम को लौटते वक्त सब्जी मंडी से कभी कभी सब्जी भी ले आती, घर आकर आंटी की बेटी दीक्षा को ट्यूशन भी पढ़ाती, फिर शाम की चाय आंटी दोनो साथ में रोज की बातों के साथ खत्म कर दीक्षा के साथ पार्क चली जाती।
रिद्धी वहा कितनी ही नई-नई ज़िंदगीयों को पार्क में खेलते, मस्ती करते देखती, उनकी नटखट हरकतों पर मुस्कुराती। कोई पोता अपनी दादी को सहारा देकर घर की ओर ले जा रहा होता, तो कही कुछ बुजुर्ग आपस में अपने गुजरे दिनों की मस्तियों के किस्सों पर हसीं ठिठोली कर रहे होते, कोई मां अपने बच्चे के रोने पर पापा के नाम से तसल्ली देती। तो कही कुछ महिलाएं, किसी पड़ोसन की चुगलियां कर रही होती । मंगलवार की एक शाम की बात है, किसी छोटे बच्चे ने अपनी तुतलाती सी आवाज में रिद्धी को अपने साथ क्रिकेट खेलने के लिए कहने लगा। तो रिद्धी ने बच्चे से बोला अपने दोस्तो के साथ क्यू नही खेलते, बड़ी मासूम सा मुंह बनाकर उसने बोला , वो मुझे अपने साथ नही खेलने देते हैं, कहते है की मैंने उनको चॉकलेट नही खिलाई न इसीलिए वह मुझे अपने साथ नही खेलने देते ।
पास ही बैंच पर बैठी उस बच्चे की दादी ने रिद्धि से कहा बेटी जरा इसके साथ थोड़ा सा खेल लो न, मुझसे तो ज्यादा चला नही जाता है । और ये जिद्दी भी बहुत है, खेले बिना मानेगा भी नही ।
रिद्धी को उस बच्चे के मासूम से चहरे और, तुतलाती सी आवाज ने उसके साथ खेलने के लिए मजबूर कर दिया। और बिना कुछ ज्यादा सोचे वह इसके साथ खेलने लग गई । कुछ देर खेलने के बाद उसे थकान होने लगी तो वह वही बेंच पर बैठ गई। कितना अच्छा लग रहा था उसे उस बच्चे के साथ खेल कर , कुछ देर के खेल में उसने अपने भविष्य को जिया था, और महसूस किया था । यह वह अहसास था , जो वह महसूस करना चाहती थी। आने वाली जिंदगी के साथ…. जो उसके जीने की वजह भी थी।
अब आगे की कहानी part – 4 में..