यूँ बुद्धा होने की कीमत
प्रश्नों ने बेचैन किया यूँ
मिली न मेरे मन को राहत
छोड़ दिया घरबार सभी कुछ
राजकुँवर से बना तथागत
देख न पाया था कोमल मन
जीवन का यूँ ही मर जाना
सुंदर सी काया का ऐसे
पतझड़ के जैसा झर जाना
मिथ्या सा संसार लगा ये
वैराग्य में हुआ ये मन रत
प्रश्न पूछती हो तुम मुझसे
जा सकता था तुम्हें जगाकर
मगर मुझे कब होश प्रिय था
कहता कुछ मैं तुम्हें उठाकर
यशोधरा ये भी तो सोचो
क्या तुम देती मुझे इजाज़त
मुझे पता है रो रो कर ही
तुमने काटा जीवन होगा
राहुल के प्रश्नों से व्याकुल
हुआ तुम्हारा भी मन होगा
आँसू बहा चुकाई होगी
यूँ बुद्धा होने की कीमत
22-05-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद