‘मेरे बिना’
‘मेरे बिना’
चलो तुम्हीं रौशन कर दो इन शमाओं को ,
मुझपे इलज़ाम लगा था इन्हें बुझाने का ,
गर इतना ही शऊर है तुमको उजाले लाने का तो
यक़ीन मानों ये शमाएं बुझती ही न मेरे हाथों से ,
चलो जाओ जो घर मुझसे था ,
मेरे बिना ही उसको फिर रौशन कर लो |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’