मेरे बस में नहीं
तुम से दूर जाना “जानाॅं” मेरे बस में नहीं
चश्म के दरिया को सूखाना धूप के ज्यूॅं बस में नहीं
जिस्म से गर लिपटे होते दम भर में नोच फेकती तुम्हें
रूहों के रहवासी से मकां खाली करवाना मेरे बस में नहीं
वो मेरे तलब में सामिल वो मेरे दीन ओ ईमान में भी
उसके सुख़न-तराज़ियाँ से किनारा कर लूं ये मेरे बस में नहीं
~ सिद्धार्थ