– मेरे बनाए प्रतिमानों पर सब विफल रहे –
मेरे बनाए प्रतिमानों पर सब विफल रहे –
सब थे अपने छायाचित्र में,
न ही कोई कभी साथ था,
दुख में हो जाते पराए,
सुख में सबका साथ था,
अपने शहर ,अपनी गली, अपने मोहल्ले , अपने परिवार के सदस्य सब बोने हो गए,
न ही किसी को कुछ लेना देना,
अपनी मन से खुद को बड़ा समझना,
न रिश्तों की कद्र है इनको न ही अपनापन इनमे है,
धन दौलत तो आती जाती यह हमारी विचारधारा में है,
पर उनके तो धन ही माई बाप और गहना है,
इसलिए अब में इन सबसे दूर होना ही चाहूंगा ,
क्योंकि मेरे बनाए प्रतिमानों पर यह सब विफल रहे,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान