मेरे बढ़ते कदम..!
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मेरी मंजिल-राह मत मोड़ो।
मेरे बढ़ते कदम मत रोको।।
मेरा कर्म लोक-हितार्थ हैं।
मेरा प्रेम निस्वार्थ हैं।।
मैं भारत हूं, शांति का सागर हूं।
मैं भारत हूं, सत्य-अहिंसा की डगर हूं।।
मेरी आजादी के बाद! वें चले मेरे पथ पर।
अपने ही गोली दागते रहें उन पर।।
आज अपने ही तोड़ने तुले हैं मुझे।
पुरानी जंजीरों में जकड़ने तुले हैं मुझे।।
मेरी प्रेम की ज्योत को मत बुझाओं।
अंधेरों में सारे जहाॅं को मत ले जाओं।।
मेरी एकता-अखंड़ता को मत तोड़ो।
मेरे बढ़ते कदम को मत रोको।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल (उज्जैन)
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