“मेरे पिता”
होश हम अपने खोने लगे थे,
सोच कर ये रोने लगे थे!
थामकर उंगलिया चलना सिखाया जिसने मुझे,
जब वो दुनिया से रुक्सत होने लगे थे!!
कैसे सहा जाता वो ग़म,
जब टूटकर बिखरे थे हम!
बचपन मे कन्धों पर जिसने घुमाया मुझे,
जब कन्धों पर हम उन्हें ले जाने लगे!!
आँखो से आँसू फिर आने लगे,
जब उनके सिखाये दुरुद जनाज़े मे आने लगे!
उनके सिखाये कल्मे-दरुद मेरे ओठो पर आने लगे,
जब लोग उन्हें कब्र मे लिटाने लगे!!
होश अपने खोने लगे थे,
सोचकर ये रोने लगे थे!
थामकर उंगलिया चलना सिखाया जिसने मुझे,
जब छोड़कर उन्हें घर हम आने लगे थे!!
((ज़ैद बलियावी))