“मेरे पिता”
पर्वत से अटल, नदिया की तरह निश्चल ,
होते हैं, पिता!
कुछ भी ना, कह कर, सब कुछ
कहते हैं ,पिता !
डांट फटकार में भी, अद्भुत प्रेम,
छुपाते हैं, पिता !
जीवन का आधार स्तंभ बन ,हमें ,
मजबूत बनाते हैं, पिता!
इशारे ही इशारे में, सारी दुनियादारी,
समझाते हैं, पिता !
अप्रत्यक्ष रूप से उंगली पकड़ ,चलना,
सिखाते हैं, पिता!
मां फटकारती ,सब सीख जाएगी, बस यही ,
कहते हैं ,पिता !
अनकही बातों में, सब कह जाना, जीवनराह,
दिखाते हैं ,पिता!
जीवन रूपी अमावश से ,पूनम तक, ले जाते
चंद्रमा की शीतलता है, पिता !
मूकभाषा में, समझाइश देते ,रुको ठहरो,
धरती मां की तरह है, पिता!
सूरज की वह तपन हैं पिता, जिसके बिना,
जीवन नीरस है,
ऐसे होते हैं पिता ,ऐसे होते हैं पिता………..
स्वरचित
श्री मती चंदा भूपेंद्र चेतना
जिला सागर
मध्य प्रदेश