मेरे पापा
मेरी सोयी उम्मीदों को बस वो जगाते है।
ग़र भूलूँ पथ मै वही राह दिखाते है।
उनकी नेकियों को मै कैसे शब्दों में बयाँ का दूँ ,,
मेरी ख़्वाहिशों के ख़ातिर जान भी लुटाते है।
क्या सही,क्या ग़लत है मुझको समझाते है।
आये मुश्किलें जो भी लड़ना सीखाते है।
आज जो कुछ भी हूँ मै बस उनकी बदौलत है,,
ग़र उदास कभी होती हौसला वो बढ़ाते है।