मेरे पांच रोला छंद
मेरे पांच रोला छंद
सममात्रिक छंद / 11, 13 मात्रा भार / दोहा छंद से उलट समचरण में 13मात्रा में समतुकांत l विषम चरण में 11 मात्राएं अतुकांत l
मदमाया परिवेश ,पवन में गन्ध घुलावे
कोकिल अपने बैन ,पपीहा सँग मिलावे ।
हुई फगुनी लाल ,मधुरस भीगी चुनरिया
मंद मंद बज रही ,अधर पे मदिर मुरलिया ।। 1।।
चलती मंद बयार ,ऋतु बन आयी बसन्ती
भवँर करे गुंजार , ध्वनि लागे रसवंती ।
सेमल होवे लाल ,पलाश खिले मुस्कावे
जंगल करके लाल ,भगवा रंग भरमावे ।। 2।।
करती फगुनी हास , आम की डाल बैठ कर
पहुँचे सब के पास , सुरभि के रंग पैठ कर ।
रंग बिरंगे फूल , झूम नाचे इठलावे
अपनी गन्ध बखेर , वन उपवन महकावे ।। 3।।
लख मधुमासी ढंग , फ़ाग मस्ती में आया
डगर डगर पर रंग , गिरा कर शोर मचाया ।
पीले लाल गुलाल , फागुनी को नहलावे
पी कर बूटी भांग , नटखटी हो मस्तावे ।। 4।।
फूले ढाक पलाश , वनों में आग लगावे
कवि संवेदनशील , देख देख कर ललचावे ।
हरे रंग के साथ , केसरी रँग मुस्कावे
सुंदरता की हंसी ,खुशी खुश हो दिखलावे।।5।l