मेरे पंख
मेरे पंख
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दिल्लगी कर गया दिल लगाया जो था।
एक ही आँख म़े मुझको भाया जो था।
प्यार उससे हुआ मन तभी मिल गया-
मेरे सपने में हर दिन वो आया जो था।।
वो गया भाग्य लगता मेरे सो गये।
रात रोते रहे रो के हम सो गये।
वो रहा जब तलक मन गगन में फिरा-
क्या गया मेरे पंख ही कही खो गये।।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”