मेरे देश का हिसाब
मेरे देश का हिसाब
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कबाब और शराब
महफिल में शवाब
यही तो है जनाब
मेरे देश का हिसाब
मिलती नहीं है रोटी
भारी है मदिरा पेटी
नियत लगती खोटी
मेरे देश की कसौटी
दुकानों पे लगे ताले
दो रोटी के भी लाले
मय पीते है मतवाले
यह देश खुदा हवाले
जहाँ से आए पैसा
काम चाहे हो जैसा
शेष जैसे का तैसा
देश वैसे का वैसा
ठेके हैं खुले मिलते
बाजार बन्द मिलते
चुल्हे हैं बूझे मिलते
रईसों के मेले भरते
हर शख्स परेशां है
खाली पड़ें मकां है
झुठी हर जुबां है
देश का मुकाम है
सुखविंद्र रब्ब राखा
ये जीवन है सियापा
मची है आपो धापा
अशांत रहे जिज्ञासा
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)