मेरे देश का क्या होगा ?
आदमी का आदमी से ब्याह होगा
औरत का औरत से निकाह होगा
बहुत चिंता में रहता हूं आजकल मैं
न जाने; मेरे देश का क्या होगा!!!
चढ़ती हैं बेटियां घोड़ी बहुत फक्र होता है
बेटा-बेटी जीवन का एक चक्र होता है
अब वही घोड़ी पर,वही डोली में
यह सोचकर दिमाग का तक्र होता है।।(कहते हैं दिमाग का दही हो गया)
कभी चिंता करवाचौथ की करता हूं
और काल्पनिक नजारों से ही डरता हूं
इधर दाढ़ी उधर मूंछें,या दो तरफा चांदनी होगी
हकीकत न समझ आए मैं खाली आहें भरता हूं।।
सिहर उठता हूं सोचकर कुछ और भी
खामोशियों में उठता है भीषण शोर भी
कि अराजक हो रहा मानव, नहीं है चेतना बाकी
आज गुलाबों से आगे निकल गई है थोर भी।।
रातभर जागता रहता पति करवट बदलता है
जो छलता था समय को रोज, उसे अब वक्त छलता है
रातभर लूटकर महफ़िल भोर में बीवी घर आए
मुंह से शब्द न निकले मगर अंतस मचलता है।।
बच्चों के हाल क्या होंगे, कहां से आएंगे बच्चे
रोटियां कौन सेकेगा तो दाने खाएंगे कच्चे
न घर होगा,,,,न परिवार ही होगा
कोई अपना नहीं होगा, मिलेंगे मन नहीं सच्चे।।
ये कैसा दौर आया है, कहां को जा रहे हैं हम!!
विरासत याद कर करके आंखें हो रहीं हैं नम ।
मेरे भारत को मत भूलो, परायों पर नहीं फूलो
“दीप” दिल में सजाए है,देश की शान को हरदम।।
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डॉ ० प्रदीप कुमार दीप