मेरे दादू
दादू की लाठी पकड़े मैं
उन्हें घुमा कर लाता हूँ
नन्हें नन्हें पाँव अभी है
दूर नहीं जा पाता हूँ
रोज कहानी मेरे दादू
मुझको नयी सुनाते हैं
सीख मिली मुझको क्या उससे
ये भी मुझे बताते हैं
और गोद मे पता नहीं कब
मैं उनके सो जाता हूँ
दादी की वो बातें कितनी
मुझसे करते रहते हैं
याद उन्हें करके अक्सर ही
वो तो रो ही पड़ते है
तब मैं खूब शरारत कर के
उनका ध्यान बँटाता हूँ
ताऊ जी के घर पर आना
जाना उनका रहता है
पर दादू के बिन घर मुझको
सूना सूना लगता है
दादू को जल्दी बुलवाओ
रो कर शोर मचाता हूँ
18-04-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद