मेरे तुम हो
मेरे तुम हो
तुम चाहत हो मत आहत हो।
तुम प्रभा नित्य शुभ राहत हो।
तुम हो बसंत मधुमास तुम्हीं।
तुम शरद काल हिय आस तुम्हीं।
तुम पीत रंग हरियाली हो।
अतिशय सुरभित मृदु प्याली हो।
तुम मधुरिम दिल का भावन हो।
प्रिय चन्दन वन का सावन हो।
बहुत मस्त हो हृदय मस्त है।
चंचलता मधुमास मस्त है।
कजरारी आंखों का अंजन।
मस्त मदन मतवाल निकुंजन।
भर दो भर दो प्यार समन्दर।
तुम्हीं परम प्रिय प्रीति धुरंधर।
मेरे तुम हो सदा रहोगे।
मस्त मस्त हर बात कहोगे।
नहीं छिपाकर कुछ रखना है।
खुले मंच से सब कहना है।
दुनिया को बतला देना है।
सहज हृदय दिखला देना है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।