अपने जन्मदिन पर
एक दिन वो भी था
जब अचानक घटाटोप अंधेरा बढ़ रहा था
बिल्कुल भी कुछ नहीं सूझ रहा था
निराशा का छत्रप डरा रहा था,
झूठे सच्चे औपचारिक मनोबल बढ़ाने का
नया खेल चल रहा था,
हार जीत के बीच में द्वंद्व मचा था
कथित उम्मीद की डोर पकड़े तब मैं झूल रहा था।
और एक आज का दिन है
मां शारदे की बड़ी कृपा है
जो ऐसा भी देखने को मिल रहा है,
मेरा जन्मदिन मनाने का
अनूठा सिलसिला चल रहा है,
जाने कहाँ कहाँ से ,
कितने जाने अंजाने लोगों का हूजूम
आज मेरे साथ खड़े हैं,
हर मुश्किल में मुस्कराने को विवश कर रहे हैं,
न रुकने, थकने और न ही बैठने दे रहे हैं।
वैसे भी जीवन भला इतना आसान कहाँ होता है?
जाने कितने दर्द सहना और हर आँसू पीना पड़ता है
फिर भी जीते रहना पड़ता है।
बस इसै जीने का आधार बना लिया मैंने,
जीने के लिए नहीं जिंदा रहने के लिए
बेहतर ढंग से जीना सीख लिया मैंने।
हर हाल में आगे बढ़ने का हुनर आ गया मुझमें,
आप सबकी सीख को हथियार बना लिया मैंने,
अकेले रहकर भी अकेलेपन को दूर कर लिया मैंने।
आप सबके बीच हूं जब आज यहाँ मैं भी
अपने होने का प्रमाण दे दिया मैंने,
आप सबके लाड़ प्यार दुलार संग
अशेष आशीषों, शुभेच्छाओं को
पूरी ईमानदारी से स्वीकार कर लिया मैंने,
पूरी विनम्रता से आप सबके चरणों में
शीष भी अब झुका लिया मैंने
एक और जन्मदिन आज मना लिया मैंने नहीं,
आप सबके साथ मुस्करा दिया मैंने।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश