मेरे जज़्बात कुछ अलग हैं,
मेरे जज़्बात कुछ अलग हैं,
कुछ अलग है मेरी सोच,
कभी तन्हाई अच्छी लगती है,
तो कभी सुहाती भीड़ मुझे।
दूर टहलना मुझे पसंद है इस कदर,
ढलती शाम गुनगुनाना,
पसंद है मुझे इस तरह,
कोई दीवाना कहता है,
कोई पागल भी कहता है।
बस मेरे दिल के हालात में ही समझता हूं।
मुझे प्रकृति के बीच रहना,
मेरे अंतरंग में खुशी देता है।
समझे कुछ भी लोग,
मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता है।
सुनील माहेश्वरी