मेरे गुरु
पहली नजर में गुरुवर को ने जाना मैने
वही मेंरे सतगुरु थे उन्हें न पहचाना मैंने
आंखों के रास्ते से जब दिल में उनके झांकें
नादान थे बहुत ही कुछ भी न देख पाए
मस्तक पे जो लिखा था उसको भी पढ़ सके ना
सांसों के दरमियां भी बाधा बनी हवाएं
जब लब वो अपना खोले तब उनको माना मैंने
वही मेंरे सतगुरु थे ये क्यों न जाना मैने
उनसे ही ज्ञान लेकर उनको ही पढ़ लिए हम
फिर कुछ बिना बताए सबकुछ समझ लिए हम
परवरदिगार से हम करने लगे दुआएं
गुरु वर को कहीं मेरी ही नजर लग न जाए
क्या ख़ुशनसीब थे हम जो हम को मिल गये वो
बेरंग जिन्दगी को रंगों से भर दिये वो
मै नन्दिनी गुरु के कदमों में शीष रख कर
कहने लगी खुदा से है इल्तिजा हमारी
देना अगर किसी को ऐसा ही गुरु देना
ऐसा ही गुरु देना….??