मेरे गीत बहुत सस्ते हैं
जीवन की इस रिक्त डगर पर
चौड़ी सी उन्मुक्त सड़क पर
मेरे कदम बहुत बहके हैं ,थामे ऐसी बाँह चाहिए।
मेरे गीत बहुत सस्ते हैं , सुनने भर की चाह चाहिए ।
जीवन में विश्वास तड़पता,
जीने तक की आस नहीं है।
कड़ी धूप में खेत जोतता,
क्या उसमें विश्वास नहीं है ।
जीवन नैया को खेने को सही सही सी थाह चाहिए—-
डगर डगर का यौवन खलता,
अपने घर का भास नहीं है।
कोठी कोठी प्यार छलकता,
क्या ये झूठी आस नहीं है ।
जीवन की विविधा के ख़ातिर, नई नई सी राह चाहिए —
आज झूठ चौराहे बिकता ,
सच्चाई का नाम नहीं है ।
कड़ी तपस्या से जो मिलता,
उस जीवन का दाम नहीं है।
नैराश्य के बृहद जाल में , थोड़ा सा उत्साह चाहिए —-
स्वार्थ साधना अच्छा लगता ,
प्रीत यहाँ बेजान हुई है ।
क्रोध यहाँ पर खूब मचलता,
क्या मानव बेमान नहीं है ।
स्वार्थ क्रोध की होली खातिर ,प्रीत स्नेह का ब्याह चाहिए–
मेरे गीत बहुत सस्ते हैं , सुनने भर की चाह चाहिए ।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
वरिष्ठ साहित्यकार ,
बड़वानी (म. प्र .)451 551
मो. 79 74 921 930