मेरे ख्यालात…
रिश्तों में मिठास रहे हरदम कुछ ऐसे ख्यालात रखता हूं ।
किसी के दिल को ठेस ना लगे काबू जज़्बात रखता हूं ।
अपनी ख्वाहिशों को दबा के सीने में रखता हूं अंदाज़ से ,
बस दो लम्हों में सिमट जाए वो लंबी मुलाक़ात रखता हूं ।
इश्क़, फरेब, नशा, बगावत नहीं है मेरे जेहन के कोने में ,
मस्त फ़कीर की दुआ सी बड़ी अपनी औकात रखता हूं ।
जरूरी नहीं मैं हर किसी के दिल का रोशन चिराग़ बनूं ,
जुगनूओं के जगमग शहर की तमस भरी रात रखता हूं ।
आज कल दूरियां बढ़ गई है अपनेपन के झूठे लिबास में ,
कुछ परायों की भीड़ में अपनों की पूरी ज़मात रखता हूं ।
सुशील कुमार सिहाग ‘रानू’
चारणवासी, नोहर, हनुमानगढ़, राजस्थान